क्या आप जानते हैं ‘रत्ती भर’ का असली मतलब? जुड़ा है इस खास पौधे से

हमारी रोजमर्रा की बातचीत में कई बार हम कहते हैं – “रत्ती भर भी नहीं!” लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ‘रत्ती’ सिर्फ एक कहावत नहीं, बल्कि एक खास पौधे का भी नाम है? यह पौधा, जिसे ‘गुंजा’ के नाम से भी जाना जाता है, अपने छोटे लेकिन खूबसूरत बीजों के लिए प्रसिद्ध है। इसकी दिलचस्प कहानी न सिर्फ भाषाई जड़ों से जुड़ी है, बल्कि इतिहास और विज्ञान से भी ताल्लुक रखती है।

‘रत्ती’ सिर्फ शब्द नहीं, एक खास बीज भी है!

‘रत्ती भर’ शब्द सुनते ही हमारे दिमाग में छोटी या बेहद कम मात्रा का ख्याल आता है। लेकिन असल में ‘रत्ती’ नाम का एक पौधा होता है, जिसके छोटे-छोटे बीजों को ही ‘रत्ती’ कहा जाता है। ये बीज लाल और काले रंग के होते हैं और दिखने में बेहद आकर्षक लगते हैं। ये देखने में तो मटर के दानों जैसे होते हैं, लेकिन मोतियों की तरह चमकदार और सख्त होते हैं। भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के जंगलों और पहाड़ी इलाकों में यह पौधा आसानी से पाया जाता है।

जब तराजू नहीं था, तब ‘रत्ती’ से होता था वजन का माप

आज हमारे पास सोने-चांदी और अन्य कीमती धातुओं को तौलने के लिए आधुनिक वजन मापक हैं, लेकिन पुराने समय में ऐसा नहीं था। तब लोग प्राकृतिक चीजों की मदद से वजन नापा करते थे। ‘रत्ती’ बीज भी इन्हीं में से एक था। इसकी खासियत यह थी कि हर बीज का वजन एक समान होता था। इसलिए पुराने समय में जौहरियों और व्यापारी ‘रत्ती’ के बीजों का इस्तेमाल सोने, चांदी और रत्नों को तौलने के लिए करते थे।

आयुर्वेद में भी खास है ‘रत्ती’

यह पौधा सिर्फ वजन मापने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसका औषधीय महत्व भी है। आयुर्वेद में ‘रत्ती’ के पत्तों और जड़ों का उपयोग कई बीमारियों के इलाज में किया जाता है। कहा जाता है कि इसके पत्तों का रस मुंह के छालों में राहत देता है, जबकि इसकी जड़ें कई अन्य बीमारियों के इलाज में काम आती हैं।

‘रत्ती’ का वजन कभी नहीं बदलता!

इस बीज की सबसे खास बात यह है कि समय के साथ भी इसका वजन कभी नहीं बदलता। चाहे इसे पानी में डुबोकर रख दिया जाए या धूप में सुखा दिया जाए, इसका भार हमेशा समान रहता है। यही कारण है कि पुराने समय में यह वजन मापने के लिए एकदम सही विकल्प था।

‘रत्ती भर’ कैसे बना रोजमर्रा की भाषा का हिस्सा?

चूंकि ‘रत्ती’ का वजन बेहद कम होता है, इसलिए इसका उपयोग मुहावरे के रूप में किया जाने लगा। आज भी हम जब बहुत छोटी मात्रा की बात करते हैं, तो कहते हैं – ‘रत्ती भर भी नहीं!’ चाहे बात शर्म की हो, हिम्मत की या फिर परवाह की, यह मुहावरा किसी चीज के बेहद कम होने को दर्शाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

अब जब भी आप ‘रत्ती भर’ सुनें, तो जान लें कि यह सिर्फ एक कहावत नहीं, बल्कि एक अनोखे पौधे और उसके ऐतिहासिक महत्व से जुड़ी हुई कहानी है!

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