दिवाली (Diwali) के पांच दिनों के त्योहार की शुरुआत धनतेरस (Dhanteras) के दिन से होती है. कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को धनतरेस का त्योहार मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन आयुर्वेद के भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था. धन्वंतरि भगवान का जन्म त्रयोदशी तिथि के दिन होने के कारण इस दिन को धनत्रयोदशी और धनतेरस जैसे नाम से जाना जाता है. इस साल धनतेरस का त्योहार 10 नवंबर को है. इस दिन भगवान धन्वंतरि के साथ माता लक्ष्मी और कुबेर की भी पूजा की जाती है. साथ ही लोग बर्तन, सोना-चांदी और झाड़ू वगैरह खरीदते हैं. आइए आपको बताते हैं कि इस दिन से जुड़ी खास बातें.
धनतेरस का त्यौहार क्यों मनाया जाता है?
कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को धनतरेस का त्योहार मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन आयुर्वेद के भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था. धन्वंतरि भगवान का जन्म त्रयोदशी तिथि के दिन होने के कारण इस दिन को धनत्रयोदशी और धनतेरस जैसे नाम से जाना जाता है.
कौन हैं भगवान धन्वंतरि
भगवान धन्वंतरि को नारायण का ही अवतार माना जाता है. वे औषधि के जनक माने गए हैं. मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था. सृष्टि में चिकित्सा विज्ञान के विस्तार के लिए ही भगवान विष्णु ने धन्वंतरि का अवतार में जन्म लिया था. इसके दो दिन बाद माता लक्ष्मी प्रकट हुई थीं. इसलिए धनतेरस के दो दिन बाद लक्ष्मी पूजन का त्योहार दीपावली मनाया जाता है. धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा करने से व्यक्ति को निरोगी काया मिलती है, साथ ही परिवार से दुख और दरिद्र दूर हो जाता है.
क्यों खरीदे जाते हैं बर्तन, झाड़ू और सोना-चांदी
धनतेरस के लिए बर्तन, झाड़ू और सोना चांदी के आभूषण खरीदे जाते हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि ऐसा क्योंकि किया जाता है? यहां जानिए इसकी वजह-
बर्तन खरीदने का कारण
कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान जब भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए तब उनके हाथ में पीतल का कलश था. ये दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा करने का दिन है, इसलिए लोग उनकी कृपा का पात्र बनने के लिए इस दिन पीतल के बर्तन खरीदते थे. लेकिन समय के साथ पीतल के बर्तनों का चलन बंद सा हो गया और स्टील के बर्तन का चलन शुरू हो गया. इसलिए आज के समय में लोग बर्तन खरीदने की प्रथा तो निभाते हैं, लेकिन वे ज्यादातर स्टील के बर्तन खरीदते हैं.
झाड़ू खरीदने की वजह
झाड़ू को लक्ष्मी का स्वरूप कहा जाता है क्योंकि ये घर की गंदगी को साफ करती है. गंदगी को दरिद्र माना गया है और जहां गंदगी होती है, वहां कभी लक्ष्मी नहीं रहतीं. इसलिए लोग धनतेरस के दिन झाडू लेकर आते हैं. दीपावली से एक दिन पहले यानी नरक चौदस को झाड़ू से घर की सफाई करते हैं और दरिद्र को दूर करते हैं. इसे बाद घर को बहुत सुंदर सा सजाकर माता लक्ष्मी के आगमन की तैयारी करते हैं और दीपावली के दिन विधिवत उनकी पूजा करते हैं.
क्यों खरीदा-जाता है सोना-चांदी
सोना-चांदी को धन माना जाता है और माता लक्ष्मी को धन की देवी कहा जाता है. मान्यता है कि धनतेरस के दिन अगर सोना-चांदी खरीदा जाए तो माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और घर में समृद्धि बनी रहती है. इसलिए लोग इस दिन सोने-चांदी के आभूषण खरीदते हैं.
धनतेरस पूजा का शुभ मुहूर्त , Dhanteras Puja Muhurat 2023
ज्योतिषाचार्य डॉ. अम्बिका मिश्र का कहना है कि धनतेरस के दिन यानी 10 नवंबर को दोपहर 12:35 बजे से त्रयोदशी तिथि शुरू होगी. हस्त नक्षत्र और शुक्रवार का दिन होने के कारण धनतेरस का महत्व काफी बढ़ गया है. इस दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा शाम के समय की जाएगी. आप शाम 05:40 बजे से रात 09:51 बजे तक भगवान धन्वंतरि की पूजा कर सकते हैं. पूजा के बाद शाम के समय घर के मुख्य द्वार पर दक्षिण दिशा में सरसों के तेल का दीपक जलाया जाता है.
धनतेरस पूजा विधि
धनतेरस की शाम के समय उत्तर दिशा में कुबेर, धन्वंतरि भगवान और मां लक्ष्मी की तस्वीर एक चौकी पर रखें. घी का दीपक जलाएं. धूप, पुष्प, अक्षत, रोली, चंदन, वस्त्र आदि अर्पित करें. धन्वंतरि मंत्रों का जाप करें और धन्वंतरि स्तोत्र का पाठ करें. इसके बाद आरती करें और घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाएं.
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि 13 दीये हैं जिन्हें दिवाली और धनतेरस के दौरान अपने घर में जलाना चाहिए और अच्छे स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए प्रार्थना करनी चाहिए । यह भी माना जाता है कि 13 दीये नकारात्मक ऊर्जा और बुरी आत्माओं से रक्षा करते हैं। वे दयालुता और पवित्रता का भी प्रतीक हैं।
धनतेरस शब्द धन से बना है जिसका अर्थ है धन और तेरस। यह दिन सौभाग्य की प्राप्ति का प्रतीक है। इस दिन लोग स्वास्थ्य और कल्याण के लिए भगवान धन्वंतरि से प्रार्थना करते हैं।