farmer success story in hindi

खास किस्म के अमरुद की खेती करने वाले एक किसान की सफलता की कहानी

धीरे-धीरे देश में पारंपरिक खेती करने वाले किसानों की संख्या बढ़ती जा रही है. कुछ फल और सब्जियां तो ऐसी हैं जिन्हें काफी दिन तक मंडियों में रखने के बाद भी किसानों को उनके अच्छे दाम प्राप्त नहीं हो पाते हैं.

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लेकिन इन सब के बावजूद भी देश के किसान अपनी मेहनत और लगन से कुछ ऐसा काम कर दिखाते हैं जिनसे उनका नाम ही नहीं बल्कि देश का नाम भी रोशन होता है. ऐसा ही एक किसान जोकि अमरूद की खेती करके बहुत मशहूर हो गया है, जो अपने खेत में अमरूद की खेती करके एक अमरुद 100 रूपये का बेचता है. आइए जान लेते हैं वह किसान जिसका नाम है सुनील कंडेला उसकी अमरूद की खेती करके सफलता हासिल करने की कहानी.

Contents

कौन है सुनील कंडेला

सुनील कंडेला एक ऐसा प्रगतिशील किसान है जिसने अपनी खेती के तौर-तरीकों में बदलाव करके आज एक सफल मुकाम हासिल कर लिया है. एक ऐसा किसान जो विभिन्न प्रकार का अमरूद उगाने का काम करता है जिसे आप आम अमरूद नहीं कह सकते और यह अमरुद आपको आसानी से बाजार में भी नहीं मिलेगा. आपको जानकार हैरानी होगी कि सुनील कंडेला ऐसे अमरुद उगाता है जो वजन में बहुत भारी होते हैं. केवल एक अमरुद को ही दो तीन लोग मिल कर खा सकते हैं. जब सुनील कंडेला से बात की गई तो उन्होंने अपनी खेती के बारे में विस्तार पूर्वक बात करते हुए बताया कि 2 साल पहले उन्होंने 3 एकड़ के अपने खेत में अमरूद का बगीचा लगाने की सोची. उस तीन एकड़ जमीन में से 1 एकड़ जमीन में उन्होंने थाईलैंड की बेहतरीन किस्म के अमरूद की खेती की.

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सुनील कंडेला की सफलता की कहानी

सुनील कंडेला ने अपनी सफलता की कहानी को बताते हुए कहा कि उन्होंने बगीचे में हर साल अमरूद की बेहतरीन फसल उगाने के लिए कड़ी मेहनत की और फिर जाकर उनके बगीचे में अमरूद का उत्पादन बड़ी संख्या में हो सका. सुनील ने बताया कि उन्होंने अपने अमरूदों को बेचने के लिए ना तो किसी प्रकार की मार्केटिंग की सहायता ली और ना ही उन्होंने अपने अमरूदों को बेचने के लिए मंडी का रास्ता देखा. यह बहुत आश्चर्य की बात है कि लोग उनके उगाए अमरूदों को खरीदने के लिए स्वयं उनके खेत में जाते हैं. यहाँ तक कि उनके गांव के ही नहीं बल्कि आसपास के गांव जिलों और दूसरे राज्यों के लोग भी उनके खेतों में अमरुद खरीदने जाते हैं.

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अमरूद की खेती

सुनील ने अपनी खेती को विस्तार पूर्वक समझाते हुए बताया कि उन्हें अपनी अमरूद की फसल बेहद पसंद है इसलिए उन्होंने अपने खेत में लगे पौधों के फलों को ट्रिपल प्रोटेक्शन फ्रॉम से पूरा कवर किया हुआ है. उन्होंने अपनी खेती के अंदर उगे हुए फलों को ट्रिपल प्रोडक्शन फॉर्म में इसलिए कवर किया है ताकि गर्मी, सर्दी, धूल और बीमारियों से उन्हें पूरी तरह बचाया जा सके. उनकी इसी तकनीक की वजह से आज के समय में उनके अमरूद का आकार काफी हद तक बढ़ गया है जिसे देखकर हर कोई आश्चर्यचकित रह जाते हैं. उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि उन्होंने अपने पौधों में किसी भी तरह के स्प्रे का उपयोग नहीं किया है ना ही वह रासायनिक खाद का उपयोग करते हैं और ना ही किसी अन्य रसायन का.

उनके खेत में केवल घास फूस और पौधों के पत्तों को गला कर प्राकृतिक साधनों द्वारा तैयार की गई खाद का ही प्रयोग किया जाता है. सबसे ज्यादा हैरान कर देने वाली बात तो यह है कि अपनी अमरूद की खेती के साथ-साथ उन्होंने तीन गाय भी पाली हुई है और उन्हीं गायों के गोबर और मूत्र के उपयोग से वह खाद तैयार करते हैं और उसी खाद से अपनी खेती को पोषण देने का काम करते हैं.

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अमरूद का वजन

सुनील की इस तकनीक से उगाए हुए अमरूदों का वजन सुनकर आप हैरान हो जाएंगे. सुनील के खेतों में उगे हुए प्रत्येक अमरूद का वजन कम से कम 800 ग्राम से लेकर 1 किलो तक होता है.

अमरुद की खरीदी

सुनील पूरी तरह से प्राकृतिक वस्तुओं पर निर्भर है इसलिए उसकी खेती भी बहुत ज्यादा अच्छी होती है जिसकी वजह से उसके अमरुद सबसे अलग और बेहद स्वादिष्ट होते हैं. सबसे बड़ी बात तो यह है कि सुनील को अपने अमरुद बेचने के लिए कहीं जाना ही नहीं पड़ता क्योंकि उन अमरूदों की खरीदी के लिए लोग स्वयं उसके खेतों तक पहुंच जाते हैं.

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अमरुद की खेती में उपयोग की गई जैविक खाद

सुनील अपने अमरुद के बागों में प्राकृतिक खाद और मूत्र में डी कंपोजर को मिलाकर एक विभिन्न प्रकार की जैविक खाद तैयार करते हैं. इस तैयार खाद की लागत काफी कम है और साथ ही इस खाद के इस्तेमाल की वजह से खेती में किसी भी प्रकार के कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं करना पड़ता है. इस खाद की वजह से सुनील के अमरुद और उनका बाग कितना ज्यादा गुणकारी है इस बात की जांच पड़ताल करने के लिए पानीपत से कृषि विभाग की टीम भी उनके खेतों में जा पहुंची थी. जब उन्होंने अमरूदों की गुणवत्ता को देखा और उसका स्वाद लिया तो वह सच में आश्चर्यचकित रह गए. कृषि विभाग टीम का कहना था कि उन्होंने सच में पहले कभी ऐसे अमरुद ना तो देखे हैं और ना ही कभी खाए हैं.

सुनील की खेती के प्रति इतनी अधिक निष्ठा देखकर लोगों को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए ताकि वह अपनी खेती की तकनीक को भी प्राकृतिक रूप से बेहतर बनाने के प्रयास कर सके. यदि हम प्रकृति से बनी वस्तुओं का अधिक और सही इस्तेमाल करते हैं तो हमारा देश कृषि के मामले में सच में बहुत आगे निकल सकता है.

किसानों के लिए सरकारी योजनाओं की लम्बी सूची

राजस्थान में मौसमी प्रकोप से फसलों की सुरक्षा के लिए संरक्षित खेती को प्रोत्साहन

किसानों को ग्रीन हाउस निर्माण पर 95 प्रतिशत तक अनुदान

14 मई 2023, जयपुर । राजस्थान में मौसमी प्रकोप से फसलों की सुरक्षा के लिए संरक्षित खेती को प्रोत्साहन  – खेती को प्राकृतिक प्रकोपों और अन्य समस्याओं से बचाने तथा जल संरक्षण के लिए प्रदेश के किसानों को अपने खेतों में ग्रीन हाउस तथा शेडनैट हाउस लगाने के लिए 95 प्रतिशत तक अनुदान दिया जा रहा है। राज्य सरकार की इस संवेदनशील पहल से किसान अधिक से अधिक संरक्षित खेती अपनाने के लिए प्रोत्साहित हो रहे हैं और अपने खेतों में ग्रीन हाउस तथा शेडनैट हाउस निर्मित कर कम क्षेत्रफल में अधिक तथा बेहतर गुणवत्ता वाली उपज प्राप्त कर रहे हैं। इस योजना से किसानों को आर्थिक लाभ हुआ है और राज्य सरकार का कृषक कल्याण का सपना साकार हो रहा है।

 राज्य में संरक्षित खेती को बढ़ावा देने के लिए आगामी 2 वर्षों में 60 हजार किसानों को एक हजार करोड़ रुपए का अनुदान दिया जाना प्रस्तावित है। राज्य सरकार द्वारा इस वित्तीय वर्ष में 30 हजार किसानों को 501 करोड़ का अनुदान दिया जाएगा।

ग्रीन हाउस और शेडनैट हाउस ने बदली खेती की तस्वीर

किसान खेती और विशेषकर बागवानी फसलों के लिये ग्रीन हाउस और शेडनैट में खेती कर रहे हैं। इस संरक्षित ढांचे को लगाने के लिये प्रदेश सरकार द्वारा चलाई जा रही सब्सिडी योजनाओं के कारण किसानों का इस खेती के प्रति आकर्षण लगातार बढ़ रहा है।

ग्रीनहाउस बहुत अधिक गर्मी या सर्दी से फसलों की रक्षा करते हैं, ओलावृष्टि औऱ अतिवृष्टि से पौधों की ढाल बनते हैं और कीटों को बाहर रखने में मदद करते हैं। प्रकाश, तापमान एवं पोषक तत्व नियंत्रण की वजह से ग्रीनहाउस मौसम की विपरीत परिस्थितियों में ज्यादा मुनाफा देता है। जिससे पारंपरिक खेती की तुलना में संरक्षित खेती से उत्पादन एवं गुणवत्ता में कई गुना वृद्धि हुई है। इस तकनीक से गैर-मौसमी फसलें उगाने में भी मदद मिलती है, जिनका बाजार में किसान को अच्छा मूल्य मिलता है। ग्रीन हाउस संरचना से वर्षा जल को संचित कर ड्रिप संयंत्र से सिंचाई की जा रही है। राज्य में इस खेती का एक बड़ा लाभ यह भी है कि इस प्रकार की खेती में पानी की आवश्यकता बहुत कम होती है।

38 लाख 17 हजार 524 वर्ग मीटर में स्थापित हुए हाउस

संयुक्त निदेशक उद्यान  श्री बी.आर. कड़वा ने बताया कि  विगत 4 वर्षो में अनुदान पाकर किसानों ने  38 लाख 17 हजार 524 वर्ग मीटर में ग्रीन एवं शैडनेट हाउस स्थापित किए हैं। इसमें 34 लाख 10 हजार 936 वर्ग मीटर में ग्रीन हाउस एवं 4 लाख 6 हजार 588 वर्ग मीटर में शैडनेट हाउस का निर्माण किया गया है। श्री कड़वा ने कहा कि इस वित्तीय वर्ष की बजट घोषणा की क्रियान्वित में 36 लाख वर्ग मीटर ग्रीन हाउस और 10 लाख वर्ग मीटर शैडनेट हाउस स्थापित कर कृषकों को लाभान्वित किया जाएगा।

किसानों को 95 प्रतिशत तक अनुदान

संयुक्त निदेशक उद्यान ने बताया कि ग्रीन एवं शेडनैट हाउस के निर्माण पर सामान्य किसानों को इकाई लागत का 50 प्रतिशत तक का अनुदान देय है। इसी प्रकार प्रदेश के अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के किसानों को 70 प्रतिशत अनुदान दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि  राज्य सरकार द्वारा इस वर्ष की बजट घोषणा में अनुदान की राशि बढ़ाते हुए अधिसूचित जनजाति क्षेत्र के सभी कृषकों तथा प्रदेश के समस्त लघु, सीमांत कृषकों को 95 प्रतिशत तक का अनुदान दिये जाने का प्रावधान किया गया है।

4 हजार वर्ग मीटर तक अनुदान देय

श्री बी.आर. कड़वा ने कहा कि किसानों को 500 वर्ग मीटर में ग्रीन हाउस स्थापित करने के लिए 1060 रुपये प्रति वर्ग मीटर, 500 से 1008 वर्ग मीटर के लिए 935 रुपये प्रति वर्ग मीटर, 1008 से 2080 वर्ग मीटर के लिए 890 रुपये तथा 2080 से 4000 वर्ग मीटर पर 844 रुपये प्रति वर्ग मीटर इकाई लागत के आधार पर  पात्रतानुसार 50, 70  अथवा 95 प्रतिशत का अनुदान दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि इसी प्रकार शेडनैट हाउस स्थापित करने के लिए एक हजार से 4 हजार वर्ग मीटर पर  710 रुपये प्रति वर्गमीटर लागत के आधार पर नियमानुसार अनुदान दिया जाता है।

राज किसान साथी पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन

ग्रीन हाउस अथवा शेडनैट हाउस स्थापित करने के लिए कृषक राज किसान साथी पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। वहीं किसानों को नक्शा ट्रेश, भू-स्वामित्व प्रमाण पत्र और मिट्टी एवं पानी की जांच रिपोर्ट के साथ आवश्यक पूर्ण दस्तावेज भी ऑनलाइन प्रस्तुत करने होंगे।

मेवाराम और  प्रहलाद ग्रीनहाउस स्थापित कर बने खुशहाल– जयपुर जिले के ग्राम गुढ़ा बालूलाई निवासी मेवाराम महरिया ने बताया कि वे पहले 16 बीघा जमीन में गेहूं, चना, सरसों की पारंपरिक तरीके से खेती करते थे,  जिससे उन्हें केवल 2 लाख रुपये तक की आमदनी होती थी। मेवाराम कहते हैं कि जब से उन्होंने राज्य सरकार द्वारा अनुदान पाकर 1.5 बीघा में ग्रीनहाउस स्थापित किया है जिसमें अब वे खीरे व शिमला मिर्च  की खेती कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि नवीन तकनीकी से खेती कर अब वे प्रतिवर्ष 6 से 7 लाख रुपये का मुनाफा अर्जित कर रहे हैं।

मेवाराम कहते हैं कि हमारे पास इतना पैसा नहीं था कि हम ग्रीनहाउस लगा सकें लेकिन यह लेकिन यह मुमकिन राज्य सरकार द्वारा अनुदान पा कर हो पाया है और इसके लिए वे मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत का बहुत-बहुत आभार व्यक्त करते हैं। जयपुर जिले के ग्राम तिबारिया निवासी प्रहलाद सिंह भामू ने बताया कि उन्होंने वर्ष 2021 में राज्य सरकार द्वारा अनुदान पाकर 2 हजार वर्ग मीटर में ग्रीनहाउस स्थापित किया था। जिसमें वे खीरे और टमाटर की खेती कर रहे हैं।

प्रहलाद ने बताया कि जब से उन्होंने ग्रीनहाउस स्थापित किया है तब से उन्हें मौसम की मार नहीं झेलनी पड़ती है। जहां वे पहले 6 बीघा में केवल एक लाख रुपये की आमदनी अर्जित कर पाते थे वहीं अब वे एक बीघा में 8 लाख रुपये तक का मोटा मुनाफा अर्जित कर रहे हैं।

छत्तीसगढ़ में सूरजमुखी की फसल अपनाने से तेजराम की आय में होगी बढ़ोत्तरी

धान की खेती से हटकर किसान अपने खेतों में उगा रहे है दूसरी फसलें

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13 मई 2023, रायगढ़ । छत्तीसगढ़ में सूरजमुखी की फसल अपनाने से तेजराम की आय में होगी बढ़ोत्तरी – कुछ समय पहले तक छत्तीसगढ़ के किसान धान की फसल के अलावा दूसरी फसलों के बारे में सोचते भी नहीं थे। लेकिन मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के द्वारा किसानों के लिए शुरू की गई जनहितकारी योजनाओं के चलते किसान अब धान के बदले दूसरी फसलों के लिए प्रोत्साहित हो रहे हैं। क्योंकि धान के अलावा अन्य फसलों को उगाने के लिए शासन छत्तीसगढ़ के किसानों को सब्सिडी दे रही है।

इस योजना से प्रोत्साहित होकर ग्राम बोन्दा विकासखण्ड पुसौर के किसान श्री तेजराम गुप्ता ने अपने खेतों में सूरजमुखी फसल लगाकर दोहरा लाभ उठाने का प्रयास किया है। उन्होंने बताया कि उनके पास कुल जमीन 4.130 हे. है। वे सभी में खरीफ  में धान की खेती करते हैं एवं रबी में 2 हे. में धान की खेती करते थे। इस रबी मौसम में ग्रा.क ृ.वि.अधि. श्री एच.के.साहु द्वारा धान फसल के बदले में सूरजमुखी फसल के बारे में बताया गया तथा उनके द्वारा दी गई जानकारी से प्रभावित होकर उन्होंने 2 हे. में सूरजमुखी लगाने का निश्चय किया। कृषि विभाग से उन्हें बीज सुक्ष्म पोषक तत्व एवं कीटनाशक नि:शुल्क प्रदाय किया गया। साथ ही उन्होंने 5 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट स्वयं से क्रय करके उपयोग किया।

किसान श्री तेजराम गुप्ता ने बताया कि खेत की तैयारी के लिये 3 गहरी जुताई एवं 2 बार रोटावेटर से जुताई करके खेत तैयार किया गया। बीज की बुवाई के समय वर्मी कम्पोस्ट को अच्छी तरह खेत में मिलाने के बाद बीज की लाईन से बुवाई किया गया।  बीज बुवाई के 25-30 दिन बाद निंदाई गुडाई एवं मिट्टी चढ़ाने का काम किया गया। कीट व्याधि के नियंत्रण के लिये क्लोरोपाईरीफास एवं एजाडिरेक्टिन 1500 पी.पी.एम.का छिडक़ाव किया गया। वर्तमान में फसल काटने योग्य हो चुका है एवं फसल की उपज काफी अच्छी हुई है। उन्होंने बताया कि इस फसल से काफी मात्रा में लाभ होने की उम्मीद है।

किसान श्री तेजराम गुप्ता द्वारा सूरजमुखी की फसल अपनाने में उनकी आय में वृद्धि होगी एवं फसल चक्र होने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति में वृद्धि हुई है। साथ ही साथ खेती की वैज्ञानिक विधियों को किसानों के द्वारा अपनाया जा रहा है।

भारत का सबसे बड़ा किसान कौन सा है?

पहले नंबर पर रामशरण वर्मा हैं

साल 1990 में मात्र 5 एकड़ से खेती की शुरुआत करने वाले रामशरण वर्मा आज 200 एकड़ से भी ज्यादा जमीन पर खेती करते हैं. साल 2019 में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया था. रामशरण वर्मा ज्यादातर सब्जियों की खेती करते हैं.

किसान क्या पैदा करते हैं?

किसान उन्हें कहा जाता है, जो खेती का काम करते हैं। इन्हें ‘कृषक’ और ‘खेतिहर’ के नाम से भी जाना जाता है। ये बाकी सभी लोगों के लिए खाद्य सामग्री का उत्पादन करते हैंं। इसमें विभिन्न फसलें उगाना, बागों में पौधे लगाना, मुर्गियों या इस तरह के अन्य पशुओं की देखभाल कर उन्हें बढ़ाना भी शामिल है।

खेती के आधुनिक तरीके क्या हैं?

बीज की सिफारिश मात्रा एवं बीजाई के नए तरीके बीज की मात्रा सिफारिश के अनुसार प्रयोग करंछ और कतारौं में बुआई करें । …
उचित पोध पोषण …
जैव-उर्वरक का प्रयोग …
हरित खाद फसले लगाएं …
अंतरवर्तीय फसल पर ध्यान दें …
उन्नत सिंचाई विधियों को अपनाएं …
पौध संरक्षण को अपनाएं …
समाकलित खेती को अपनाएं

पहले किसान कैसे खेती करते थे?

खेतिहर समाज की बुनियादी इकाई गाँव थी जिसमें किसान रहते थे। किसान साल भर अलग-अलग मौसम में वो तमाम काम करते थे जिससे फ़सल की पैदावार होती थी जैसे कि ज़मीन की जुताई, बीज बोना और फ़सल पकने पर उसकी कटाई । इसके अलावा वे उन वस्तुओं के उत्पादन में भी शरीक़ होते थे जो कृषि – आधारित थीं जैसे कि शक्कर, तेल इत्यादि । अध्याय 9 ) ।

भारत में कौन सा राज्य कृषि में नंबर 1 है?

बाजरा, चावल, गन्ना, खाद्यान्न, और कई अन्य सहित राज्य-स्तरीय फसल उत्पादन के साथ उत्तर प्रदेश भारत का शीर्ष कृषि राज्य है। यह हरियाणा, पंजाब और मध्य प्रदेश से आगे, भारत के गेहूं उत्पादक राज्यों में पहले स्थान पर है।

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